परछाई
मैं और वह, वह और मैं
अक्सर उजाले में मिला करते
एक दूसरे को देर तक देखते
और ऐसा महसूस होता
मानो हमारा संबंध काफी गहरा है
मेरे दिल की धड़कन
सिर्फ उसके लिए होती
मैं चलता तो वह चलती
मैं हंसता तो वह हंसती
मैं उदास होता तो वह भी होती
हमदोनों में कभी एक दूसरे से
न तो स्पर्श हुआ
और न ही हुई बातें
पर मुझे महसूस होता
मानों वह समाई हो
मेरे रोम-रोम में
उसके बारे में सिर्फ इतना
कह सकता हूं मैं कि
मेरे प्यार और शुद्ध आत्मा
की मिलन थी वह
वह कुछ और नहीं
वह थी मेरी छाया, मेरी परछाई।