” परछाई :जन्मों की संगिनी “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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एहसास होता है
जब से होश संभाला है
तब से हमारे साथ
चलती हो
हमारी भंगिमाओं
हमारी आकृतिओं का
अनुकरण कोई तुम से सीखे !!
हम बैठ जाते हैं
तुम भी बैठ जाती हो
हम दौड़ते हैं
तो तुम भी दौड़ जाती हो !!
भूख का एहसास
तुमको कभी होता नहीं
चाहतें तुम्हारी नजदीक
आती नहीं !!
मौन रहकर हर क्षण
हमारे साथ रहती हो
कभी थकती नहीं !
बस अंधेरों में
विश्राम करती हो !!
प्रकाश की किरणों में
तुम्हारा रूप निखरता है
फिर दिनभर
तुम्हारा साथ रहता है !!
सब भले छोड़कर
चला जायेगा
पर तुम्हारा साथ
अंतिम साँस तक रह जायेगा !!
तुम हमारे साथ रहने की
कसम खायी हो
हम क्यों कहें कि
तुम मेरी “परछाई “हो !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत