” परछाईयां “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
===========
ना प्राण है ना जान है ,
भूख -प्यास लगती ही नहीं !
पर हमारा साथ भला ,
वो कभी इसे छोडती ही नहीं !
परछाईयों की बात ,
मत पूछो वो भागती ही नहीं
मेरी भंगिमा ओं को ,
कभी वो भूल पाती ही नहीं !
हम भले थक जाएँ ,
उनको थकान आती ही नहीं !
साथ छोड़ते सब ,
मगर हमें ये छोडती ही नहीं !
सुख दुःख के साथी ,
हैं , हमें कभी भूलती ही नहीं !
रातों में उसे चैन रहे ,
दिनमें तो वो सोती ही नहीं !
असहज दूसरे की है ,
अपनी कभी डरती ही नहीं !
मित्रता ऐसी हो प्यारी ,
जो छोड़ने से छूटती ही नहीं !!
====================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका