पंछी पिंजरे का
पिंजरे में इक कैद था पंछी
साथी था उसका आजाद।
किन्तु सदा करता तैनाती
बड़ा ही जुल्मी था सय्याद।
साथी देता उसे दिलासा
दिल छोटा मत करना तू।
इक दिन ऐसा भी आएगा
खुले नभ तले उड़ना तू।
मत हताश हो न निराश हो
शीघ्र ही वापस आऊंगा मैं।
मीत मेरे तू नहीं अकेला
कैद से मुक्ति दिलाऊंगा मैं।
मुक्त गगन में स्वच्छंद विचरण
का करूँगा पूर्ण मैं तेरा स्वप्न।
आजीवन तुझे कैद रखने की
सय्याद की तमन्ना करूँगा दफ़्न।
धैर्य से रहना मीत मेरे तुम
संकट में न खींचूंगा मैं हाथ।
मैं हूँ यहीं तेरे आसपास ही
इक दिन दोनों उड़ेंगे साथ।
खुलेगा पिंजरा उड़ेगा पंछी
वह शुभ दिन भी आएगा।
रखना भरोसा साथी पर मितवा
हमसफर तुझे ही बनाएगा।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
दिनांक 18/12/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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