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26 Feb 2024 · 1 min read

पंछी अब तुम कब लौटोगे?

भले शाम हो बहुत सुहानी, ढलते ढलते ढल जाएगी
नीड़ दूर है, पथ लंबा है, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

पग-पग मायाजाल का घेरा, व्याधों का भी यहाँ बसेरा
देह बचाकर मन को थामे, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

माना पर में ओज बहुत है, नयनों में भी तेज बहुत है
लेकिन रीता अंतस भरने, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

कई कई हैं सहचर साथी, पथ में फिर भी तुम एकाकी
अपनेपन की क्षुधा मिटाने, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

समय रेत बिंदु की भांति, पल में बिखरा फिसला जाए
इसकी चंचल धार थामकर, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

दूषित वन है मैला तन है, पवन के कण भी धूसर धूसर
स्वच्छ निलय में दीप जलाने, पंछी अब तुम कब लौटोगे?

डाॅ. सुकृति घोष
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र
शा. के. आर. जी. काॅलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

2 Likes · 2 Comments · 97 Views
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