पंचमी अवसर
चौपाई
पृथ्विराज नामक इक राजा।
दिल्ली से करता हर काजा।।
दिल्ली उसकी थी रजधानी ।
शूरवीर की अमर कहानी ।।
मुहम्मद गौरी इक विदेशी ।
रहा लुटेरा वह परदेशी।।
पृथ्वी राज महा बलशाली ।
लड़ा मोहम्मद दुश्मनी पाली।।
कीन्हीं सोलह बार लड़ाई ।
बार बार मुँहकी ही खाई।।
मन उदार जिन्दा ही छोड़ा।
अबकी बार युद्ध मुख मोड़ा।।
बंदी बना लिया वह राजा।
काबुल पहुँच बजाता बाजा।।
आँखें फोड़ लिया था बदला ।
पृथ्वी पति से करता जुमला।।
कवीराज दिल्ली का एका।
चाह रहा बदले का मौका ।।
लेने खबर चन्द्रवरदाई।
काबुल पहुँचा मिलने भाई ।।
मुगल राज को कथा सुनाई ।
धनुष वाण विद्या समझाई।।
शब्द सुनत ही लक्ष्य साधना ।
पृथ्विराज को देख आँकना ।।
सुन गौरी मैं राज बताऊँ।
शब्द भेदी वाण चलवाऊँ।।
बसंत पर्व पंचमी अवसर ।
दिल्ली पति से बोलो खुलकर।।
कविता पाठ कही सब दूरी ।
पृथ्वि राज समझी मजबूरी ।।
हुकुम आपका मिले हुजूरा।
सात तबाँ छेदन हो पूरा।।
ज्यों ऊपर से गौरी बोला। ।
पृथ्वी राज धनुष मुँह खोला ।।
छूटत वाण लगा उर माही।
गौरी बोल सका फिर नाही।।
लगा वाण छूट गये प्राना।
शब्द भेदी मरम सब जाना।।
चंद्र कवि संग मार कटारी।
दोनों जीत मरे रण पारी।।
राजेश कौरव सुमित्र