न होता आदमी जग में, जो औरत जात न होती
न होती रात दुनिया में, तो दिन की बात न होती
न होती औरत इस जग में, तो आदमी की जात न होती
न होता दुख इस दुनिया में, तो सुख की बात न होती
न होते बुरे इस जग में, अच्छों की पहचान न होती
न होती धूप दुनिया में, तो फिर छांव न होती
न होता पानी इस जग में, तो फिर आग न होती
अगर हिंसा द़ेष न होते, तो नफरत भी नहीं होती
नहीं मिटतीं सभ्यताएं, दुनिया और ही होती
प्रेम है इंसान दुनिया में, हिंसा शैतान होती है
इल्म से इंसान को, नेकी बदी का ज्ञान आया है