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26 Feb 2023 · 1 min read

न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।

गज़ल

122……122…..122…..122
न रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
या अल्लाहताला, तूही अब बचाले।

है बैरन ये दुनियां, कहां जाएं यारो,
कोई भी तो आए, मुझे जो सॅंभाले।

किरण कोई उम्मीद, की भी नहीं है,
ॲंधेरों ने घेरा है, रूठे उजाले।

मेरा घर है जन्नत, तेरा है जहन्नुम,
बनाया जो तूने, उसी का मजाले।

नहीं चाय पीने के काबिल रहा तू,
वतन हैं सॅंभाले, यहां चाय वाले।

न आतंक दहशत तेरे काम आया,
अभी खुद को तू दूर जल्दी हटाले।

बहुत दूर सब तुझसे नापाक प्रेमी,
है बेहतर तू हो जा खुदा के हवाले।

……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी

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