न थी ।
जलती तो थी पर आग न थी ।
बरसती तो थी पर बरसात न थी।
चमकती तो थी पर कोई आभ न थी।
बजती तो थी सुरीली पर कोई सितार न थी ।
कहूं क्या मै उस कहकशा को ।
ठहरती तो थी पर मुसाफिर न थी।
हंसती तो थी खिल-खिलाकर पर कोई खुशी तो न थी ।
बेवजह तो सब कुछ नही था ।
जागती थी हर पल वो दिन नही वो रात थी ।
ये भी क्या अजीब था उसका कही पर खो जाना ।
पर ऐसी कोई बात तो न थी ।
मैने न जाना तूने न जाना ।
पर दिल में उसके भूचाल -सी थी।
उमङती-घुमङती तो थी वो पर कोई घटाओ की सैलाब तो न थी।
दर्द समझ में नही आता उसका ।
रोती भी नही ऐसे लगता जैसे कोई बात नही ।
चंचल मन -सी थी उसकी सोच पर एक जगह ही वह विराजमान सी क्यो थी ।
जहर का घूंट वो पी रही थी,पर ऐसा क्यो लग रहा था वो बिल्कुल ठीक-ठाक थी ।
दम तोङा भी उसने सांसे छोङा भी उसने ।
तो बताया क्यो कुछ नही उसे तकलीफ क्या थी ।
क्यो दर्द को भी उसने जीत लिया।
जैसे लगा दर्द से निपटने की उसकी कोई तरकीब न थी ।
न जाने कितने ऐसे है अंदर गमो कायम समंदर पीए जा रहे है ।
चेहरे पर कोई शिकन तक नही ।
वो भी क्या इंसान होंगे जो कभी किसी से कुछ कहते नही ।
काश जान जाते हम उसके उतरे हुए चेहरे कायम राज तो शायद कोई आत्महत्या होती नही ।
गमो को बांट ले हम भी थोड़ा सा।
अपने हिस्से की थोड़ी खुशी दे दे उसे ।
कहती तो बहुत थी वो पर अंदर से चुप थी ।