नफ़रत का बीज
क्या है ये जीवन
बस हंसना रोना
मिलना सभी को
और फिर है खोना।
है दर्द सबका
बस एक जैसा
और ये खुशी
सबकी एक जैसी
कोई महलों में रहता
कोई जमीन पर रगड़ता
आना और जाना
है सभी का एक जैसा।
तू मुझको मारे
या मैं तुझको मारू
ना तू मरा है
ना मैं मरा हूँ
इंसानियत को ये ज़ख्म मिला है
तेरी और मेरी
मेरी और तेरी है गति एक जैसी।
जो तत्व है
उसे खाक होना
विचारों की दुनिया
इसी को अमर होना
जो दिखता है उसी को मिटना
जो दिखता नही वही पूर्ण सत्य जैसा
आज तू है मेरा
कल होगा किसी का
बिना कारण के
ना कोई कर्म होता..
खला में तैरती ये चट्टान ऐसी
ना कोई ऊपर
ना कोई नीचे
है कोई भगवान या कोई खुदा
उतना ही दूर मुझसे
जितना दूर तुझसे
जो पास है उसी को समझ अपना
मोहब्बत की दुनिया में
ना नफरत का बीज बोना…!!