नज़र किसी ने गुलों पर खराब डाली है
नज़र किसी ने गुलों पर खराब डाली है
ये सोच सोच के कितना उदास माली है
झुके न खुद ,न किसी को झुकाया है हमने
बजाई हाथ से दोनों हमेशा ताली है
यहां जो पुण्य कमाते हिसाब रख रख के
खुदा के नाम पे लगता करें दलाली है
कहानी अपनी मुहब्बत की कैसे हो पूरी
निगाहों पर पड़ी शक की महीन जाली है
विरोध कर नहीं पाये दबाव में आकर
निगाहें उठ रहीं उनकी मगर सवाली है
हैं बन्द ‘अर्चना’ खुशियां तिज़ोरी में ऐसी
हमारे हाथों में ही रहती जिसकी ताली है
27-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता