न्याय की है तुला ,-मुक्तक
मित्रों ,मैं माननीय उच्चतम न्यायालय के एडल्ट्री पर फैसले का सम्मान करता हूं, आशा करता हूं कि, इससे हमारा समाज सुसंगठित व सुसंस्कारी बनेगा ।विघटन ,असुरक्षा का तंत्र ,जो नव विवाहित युवाओं, को दिशा भ्रमित कर रहा है उस पर विराम लगेगा ।यह कविता व्यंग्य है ,पाश्चात्य सभ्यता,प्रेरित युवाओं को संदेश देने का प्रयास मात्र है। धन्यवाद!
न्याय की है तुला ,तौल रिश्ते बना,
सात फेरे नहीं, कामना से बना
झूलता ,डोलता ,आज विश्वास है,
कौन किसका यहाँ, कौन किसका बना ।1,।
भामिनी ना सगी , पुत्र भी न सगा,
ज्ञात होता नहीं, कौन यारौं ठगा ,
जांच गुणसूत्र की नित्य परिवाद में
जिन पे विश्वास था, दे गये वो दगा।2।
आज बदला समय, बदले नाते सभी
आज अपने नहीं, बेटी-बेटे अभी,
शक ही शक है यहां ,आज चारों तरफ
प्यार गुम हो गया, जो यहाँ था कभी।3।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव २७.९.२०१८