नोटबंदी ने खुश कर दिया
बदनसीबी का ये आलम था,
की रुपयों का गठ्ठर मिला,
और नोटबन्दी हो गयी।
जो मिले वो तो कागज हो गए,
जो मेरे थे वो भी कागज हो गए।
ख़ुदा का शुक्र था,
कि हर तरफ़ वही गठ्ठर था,
सब मेरे जैसे हो गए,
और मैं सबके जैसा हो गया।
सब फ़र्क मिट गया,
रात के आठ बजते ही,
मैं अमीरों के साथ हो गया,
और वो मेरे साथ हो गए।
जो ना कर सका ख़ुदा,
और ना मेरी मेहनत का नसीब,
वो सब एक आवाज़ में हो गया,
मुझे अमीर होने का गम ना रहा,
अमीरों को गरीब करने का बदला पूरा हो गया।