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12 Jul 2020 · 1 min read

नैय्या की पतवार

जब हाथों दे दिया तुमको अपना हाथ तो डरना क्या ?
मेरी नैय्या की पतवार तुम्हारे हाथों में तो डरना क्या ?

मेरे साजन इस तरह रूठेगें यह मुझे मालूम न था ,
इतना हमसे दूर चले जायेंगे, मुझे मालूम न था ,
दुखयारी को इस कदर छोड़ेंगे मुझे मालूम न था ,
अरमानों को इस कदर तोड़ेंगे मुझे मालूम न था ,

जब हाथों दे दिया तुमको अपना हाथ तो डरना क्या ?
“गुनाहों की पोटली ” तेरे दर पर लाया तो डरना क्या ?

अब तो हर तरफ धुआँ ही धुआँ और आगे खाई है ,
तेरी “मनमोहक छवि ” मेरे दिल पर उतर आई है ,
आज ‘फूलों की नगरी ” क्यों सहमी- सकुचाई है,
जग के मालिक तेरी याद हमें अब बहुत आई है,

जब हाथों दे दिया तुमको अपना हाथ तो डरना क्या ?
नगरी की सलामती की भीख माँग रहा तो डरना क्या ?

अब फूलों के बाँटने का सौदा कभी न करेंगे,
फूलों की खुसबू के ठेकेदार कभी भी न बनेंगे,
तेरी इस नगरी में प्यार का दिया जलाते रहेंगे,
इंसानियत का पैगाम घर-२ पहुंचा कर रहेंगे,

जब हाथों दे दिया तुमको अपना हाथ तो डरना क्या ?
तेरी चोखट पर रख दी अपनी“ श्वाश ” तो डरना क्या ?

देशराज “राज”

Language: Hindi
3 Likes · 6 Comments · 703 Views
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