नेह की डोरी
नेह की डोरी
राखी केवल नहीं है धागा
है यह स्नेह की इक डोर सबल।
इस प्यार को निभाता हर भाई
रक्षा बहन की करे हल पल।
बिन बहना के सूना है हर घर
खुशियों से गुंजित हो न सकेगा।
युगों युगों से यह त्योहार,
दर्शाता भाई बहन का प्यार।
इसके माध्यम से ही जताते,
दोनों अपने स्नेहिल उद्गार।
बिन तेरे ओ बहन लाडली,
जीवन आसान हो न सकेगा।
बचपन बीता साथ साथ,
और जब हुई विदा इस घर से बहना।
वह पल था सबसे दुखदायी,
भैया का मुश्किल हुआ सहना।
अब साथ कभी तेरा हो न सकेगा।
अब किस के संग होगा झगड़ना,
अपनी गुपचुप बातें कहना।
मीठे-मीठे लालच दे छोटी को,
उसकी खर्ची खुद ले लेना।
अब ये कभी भी हो न सकेगा।
रात में देर से छुपकर आना,
छुटकी को मन के भेद बताना।
छुटकी का तेरा झूठ छिपाना,
भाई की खातिर खुद डांट खाना।
अब ये कभी भी हो न सकेगा।
उसकी चुटिया पकड़ खींचना,
उस पर उसका खूब चीखना।
भेद खोलने की धमकी मिलना,
एवज में कुछ रिश्वत पाकर,
उसका भोला चेहरा खिलना।
अब ये कभी भी हो न सकेगा।
आ गयी राखी आ जा बहना,
बहुत कुछ है तुझसे कहना।
अब है तू किसी घर की शान,
जो थी कभी इस घर का भाग्य।
तेरे काम आ सकूं मैं लाडो,
वह होगा मेरा सौभाग्य।
-रंजना माथुर दिनांक 07/07/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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