नेतागिरी
नेतागिरी भी इक धंधा है,
पैसा कमाने का इक फंडा है ।
झूठे है वादे झूठी इनकी शान,
न माने ये किसी की आन ।
जन सेवा का करत दिखावा,
पैसा कमाना इनका काम ।
हाथ जोड़ वोट ये मांगते,
पैर पकड़ निकाले अपना काम ।
चुनाव आते निकल पड़ते,
जैसे बिल से निकले सांप ।
नित नये नेता खडे़ ,
बोल न आवे इनको सांच ।
टिकट न मिले तो पार्टी बदले,
दल बदलू बन करते घात ।
खाया नमक जिस थाली का,
मारत उसमें लात ।।
झूठे वादों की दम पर जीते,
काम की लगावे जनता आस ।
भोली भाली जनता का ,
अक्सर तोडे़ ये विश्वास ।
जब जनता अपना दम दिखलाती,
सत्ता में खलबली मच जाती ।
आंदोलनों का दौर है चलता,
आश्वासनों पे बात है थमती ।
जब पूरण न होवे जनता के काम,
जनता दिखलाऐ अपना दम ।
जब चुनाव की बारी आई,
नेता जी की सत्ता पलटाई ।।
कितना बडा़ भी नेता बन ले,
जनता को पहले समझ ले ।
न चलावें मनमनी अपनी,
भारत में है जनता सरकार ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)