*नेकलेस (कहानी)*
नेकलेस (कहानी)
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लॉकडाउन को समाप्त हुए आज ग्यारहवाँ दिन था । दीपक ने अपनी सर्राफे की दुकान हमेशा की तरह खोली तथा काउंटर साफ करने के बाद गद्दी पर बैठ गया। बाजार में सन्नाटा था । पिछले दस दिन से यही चल रहा था कि दीपक आकर दुकान खोलता था, गद्दी पर बैठता था और फिर शाम को खाली हाथ घर वापस लौट जाता था। बिक्री के नाम पर बोहनी तक नहीं होती थी ।
ग्यारहवें दिन भी दीपक उदास बैठा था। सोच रहा था कि शायद आज भी कोई ग्राहक न आए ,लेकिन तभी सामने से नई कॉलोनी वाली मिसेज दीपिका दुकान पर चढ़ीं। उन्हें देखकर दीपक की आँखों में चमक आ गई । लॉकडाउन से थोड़े दिन पहले ही तो मिसेज दीपिका दुकान पर आकर एक सोने का नेकलेस पसंद करके गई थीं। कीमत बयालीस हजार रुपए बैठी थी । नेकलेस उन्हें पसंद आ रहा था लेकिन इतने पैसे की गुंजाइश नहीं थी । अतः “बाद में कभी आऊंगी “-कह कर चली गई थीं। आज जब आईं तो दीपक को लगा कि शायद आज कुछ बिक्री हो जाए ।
“बैठिए मिसेज दीपिका ! क्या नेकलेस..” दीपक का इतना कहना ही था कि मिसेज दीपिका ने कहा ” हाँ! नेकलेस के बारे में ही आई हूँ।”
सुनकर दीपक खुशी से उछल पड़ा। वाह ! आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा। लेकिन यह खुशी मुश्किल से आधा मिनट ही टिकी होगी क्योंकि मिसेज दीपिका ने अपने पर्स में से एक पुराना टूटा- फूटा नेकलेस निकाला और कहा ” लालाजी ! आप से ही तीन- चार साल पहले खरीदा था । अब बेचने की नौबत आ गई…” कहते हुए मिसेज दीपिका की आँखें भर आई थीं।
दीपक से भी कुछ और नहीं पूछा गया। उसने नेकलेस तोला और हिसाब लगाकर मिसेज दीपिका को बता दिया ” नेकलेस छत्तीस हजार रुपए का बैठ रहा है । आप कहें तो रुपए दे दूँ?”
” हाँ! रुपए दे दीजिए । इसी लिए तो लाई हूँ।”
तिजोरी से रुपए निकालकर दीपक ने मिसेज दीपिका को दे दिए । मिसेज दीपिका रुपए ले कर चली गईं। उनके जाने के बाद दीपक ने नेकलेस को तिजोरी में रखने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने नेकलेस को अपनी कमीज की जेब में रख लिया और बुदबुदाकर स्वयं से कहने लगा “मुझे भी तो घर-खर्च चलाने के लिए नेकलेस गलाना ही पड़ेगा ।”-उसकी आँखें भी यह बुदबुदाते हुए भर आई थीं।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451