नीड़ ।
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर ,
फिर बुलबुल ने नीड़ बनाया ।
अपने अद्भुत रचना कौशल ,
से उसने परिचय करवाया ।।
कौन कवि, वर्णित कर सकता ,
है उसकी निर्माण कला को ।
शब्दहीन मानव हो जाता ,
देख नियति की चंचलता को ।।
पाकर समय दिए अंडे फिर ,
सतत करे उनकी रखवाली ।
भूख प्यास को त्याग चतुर्दिक ,
रख चौकन्नी नजर निराली ।।
अपने नन्हे मेहमानों के ,
जन्म हेतु यह अग्नि परीक्षा ।
अटल भरोसा मन में लेकर ,
करती है नित इनकी रक्षा ।।
सफल साधना हो जाती है ,
जब बच्चे सकुशल आते हैं ।
नई उड़ानें भरने की वह ,
कोशिश करते अकुलाते हैं ।।
उगे पंख तब छोड़ बसेरा ,
सभी ज़हाँ में उड़ जाते हैं ।
सूना नीड़ प्रतीक्षा करता ,
पुनः कहाँ फिर आ पाते हैं ।।