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7 Oct 2021 · 1 min read

नीतिश्लोके

नीति श्लोके

भारभूता भवत्युर्वी भ्रष्टाचारेण भूतभिः।
सज्जनानामतिशये अक्लेशमनुभूयति।।

क्षुद्रो राजा शठा मंत्री, स्वार्थलिप्तो प्रजा तथा।
तस्मिन् देशे न उत्थानो, न श्रेयश्च न कीर्तिरपि।

अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’

Language: Sanskrit
8 Likes · 317 Views
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