निसर्ग
छलकती है वो गगरी,
जो हो अधभरी,
जिस जगह तुम नहीं,
कैसी नगरी.
प्रेम गली अति सांकरी
कौन नर कैसी नारी.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस
छलकती है वो गगरी,
जो हो अधभरी,
जिस जगह तुम नहीं,
कैसी नगरी.
प्रेम गली अति सांकरी
कौन नर कैसी नारी.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस