“निष्ठुर “
निष्ठुरों की नगरी यह जग
निष्ठुरों का है रेला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
हो रहा है प्यारी प्रकृति का
निर्दयता से दोहन
न इस पर है ध्यान किसी का
कर रही प्रकृति रुदन
भयावह इसका दुष्परिणाम
अंततःमानव ने ही है झेला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
पुरुष प्रधान समाज सदा ही
पुत्र रत्न का रहा आकांक्षी
यदि हो भ्रूण कन्या का तो
गुपचुप हत्या कोई न साक्षी
आगमन पूर्व विदा में धकेला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
यदि भाग्य वश हुआ अवतरण
चहुंओर गिद्ध दृष्टि है छाई
कुत्सित सोच और घृणित निगाहें
पड़ोसी रिश्तेदार या भाई
नारी जीवन है अभिशप्त
असहाय दुखों का झमेला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
बम बंदूक विस्फोट हत्याएं
आज के युग के यही आचार
निर्दोषों के रक्त से रंजित
नवयुग की नींवों का आधार
आतंकों का साया
सकल समाज में फैला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
बाढ़ तूफान भूकंप इत्यादि
हैं सब प्राकृतिक आपदाएं
रेल दुर्घटना बलात्कार हत्याएं
हैं मानव निर्मित विपदाएं
निदान से मुख छिपाते नेता
कलुषित मन इनका विषैला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
काट पेट को कतरा-कतरा
तेरी राह बिछाई खुशियाँ
तेरा सेवा का आया अवसर
तो वृद्धाश्रम में देदी विदाई
अरे अधम तू ऋणी रहेगा
कई जन्मों का है यह खेला
यहाँ न एक निष्ठुर है अकेला
यहाँ है निष्ठुरों का मेला।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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