*** ” निर्झर……..!!! ” ***
* कल-कल -छल-छल बहती तू ,
हे निर झर निर्मल ।
न गरल , अति सरल , हो प्रबल ,
तू बहती सतत्-अविरल ।।
न जाने कितने चट्टान-शिखर ,
तेरे अदम्य शक्ति से हो जाते बिखर ।
तेरे निर है जैसे , मानों कोई कनस्तर ;
तभी तो बन जाते हैं कंकड , चट्टान और पत्थर ।
तू है अति विकराल-विशाल ,
और कहीं-कहीं पर है तू ;
मानों जैसे मन को हरने-भरने वाली नैनीताल।
हे निर्भिक निर झर ,
तू बहती रह यूँ ही अविरल ,
और कर जा मेरे मन को धवल ।
रोक ना सके तूझे , कोई पर्वत-शिखर ,
चंद्र-शेखर की ललाट से निकल ,
बन जा तू गंगा सी निर्मल।।
आज तपन की प्रकोप से ,
घट रही है जल स्तर ;
झर-झर बहती , हे निर झर ,
तू इसे अब शीतल कर।
हे हितकर निर्झर ,
हिन्दुस्तान की मिट्टी को ,
हरियाली से परिपूर्ण कर ।।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ.ग. )