निराश हताश ये बेटियां!
मेडल लेकर जब लौटी तो,
वाह वाही सब लूट रहे थे,
गर्वित हुए हम सभी हिंदुस्तानी,
तब सब यही तो कह रहे थे,
पी एम -सी एम न्यौता देकर,
पास वो अपने बुला रहे थे,
देश की बेटियों को तब वह,
अपने घर आंगन की जता रहे थे!
भ्रम जाल ऐसा बना,
मुगालता ये पाल गये थे,
हुई ऊंच नीच जो इनके संग में,
वो इनको बता रहे थे,
उम्मीद लगाए बैठे थे ये,
न्याय हमें मिल जाएगा,
होना पडा था जो हमको लज्जित,
अब छुटकारा मिल पायेगा,,
नही पता था जाल कुटिलता का,
फंदा हम पर ही कस जाएगा,
रह गये ताकते जंतर मंतर पर,
कोई मसीहा तो आएगा!
पर यह क्या हो गया,
ऐसा कुछ तो सोचा ही ना था,
जिस पर उत्पीड़न का दोष मढा था,
वो ही उनका प्रिय बन जाएगा,
हम क्या हैं उनकी नजरों में,
क्यों कोई हम पर तरस खाएगा!
अपना सब कुछ दांव पर रख कर,
पदक पर हमने दांव लगाया,
पदक तो जीत लिया था तब हमने,
आज स्वयं को खाली हाथ ही पाया,
हाय नहीं था गुमा ये हमको,
ऐसा भी एक दिन आएगा,
जिस देश की खातिर पदक लिया था,
वहां न्याय हमें नहीं मिल पायेगा,
भ्रम भी टूटा आस भी टूटी,
टूट गया सपना अपना,
देख दिखावे का ढोंग रचा था,
था नहीं कोई भी अपना,
निराश हताश ये बेटियां,
खो ना दें हम ये बेटियां!
हस्तिनापुर की आंखों में पटी बंधी है,
दुशासन जैसा कोई कर रहा चीरहरण,
इतिहास दोहराने की दहलीज पर है
मौन धारण कर बैठे हैं विद्व जन !
आद्र भाव से पुकार रही हैं वो ,
कोई तो आऐ कृष्ण बन !!