नियति
मानवता को निखार रही
नियति आज पुकार रही ।
दोष न कुछ इसमें मेरा
भोग रहे कर्मों का फेरा ।
बात न मानी कभी सही
नियति आज पुकार रही ।
समय दिया सावधानी का
नशा तुम्हे मर्दानी का।
गलत राह विज्ञान गही।
नियति आज पुकार रही ।
धरा धाम पर तुमको भेजा
स्वर्ग रचो जैसा मन हो जा।
तुमने चन्द्र मंगल राह गही
नियति आज पुकार रही ।
विविध भोज्य पदार्थ दिये
जीव मांस हित तुम जिये।
हत्या फल का ज्ञान नहीं
नियति आज पुकार रही।
नर से नारायण बनने का
मार्ग भूल गये वेदों का ।
शैतानी सभ्यता याद रही
नियति आज पुकार रही ।
जग नियंता परम पिता के
मानस पुत्र तुम अमृत के।
विष पान क्यों लगा सही
नियति आज पुकार रही ।
दोष नियति को मत देना
मानव बन सीखो रहना ।
आयेगा फिर बक्त सही
नियति आज पुकार रही ।
मानवता को निखार रही
नियति आज पुकार रही ।
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राजेश कौरव सुमित्र