निबंध व्यंग्य कविता
अधिकारी कहो या ऑफिसर
या कहो अफ़सर या कहे निबंध.
इनके औहदे पर कोई फर्क नहीं पडता,
मालूम नहीं कैसा,
है व्यवहार इनके,
कोई नहीं समझता.
सुना है ये सरकारी होते है,
इन तक आदमी सीधे नहीं पहुंच सकते.
ये है, एक बहुत बडी समस्या.
बाबू उससे से ऊपर ,
पद चपरासी,
एक पद गनमैन,
जो हर हरकत पर नजरें रखता.
बिन किए कुछ भी,
बिल्कुल नहीं बक्शता.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस