निज अंतस का राम जगा लो।
क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या को छोड़ो, दया, प्रेम, ईमान जगा लो।
राम की भक्ति करने वालों,निज अंतस का राम जगा लो।।
क्षमा,शील,तप,त्याग भाव को,
मर्यादा, सद्गुण, स्वभाव को।
उच्च,पवित्र,सुंदर विचार को,
आज्ञाकारी सुत स्वभाव को।
सबको तुम संस्कार बना लो,
जीवन का आधार बना लो।1
राम की भक्ति करने वालों,
निज अंतस का राम जगा लो।।
झूठ, डकैती, मारा–मारी,
और फिरौती मांँगन वालों।
पहन गेरुआ,तिलक लगाकर,
सबको मूर्ख बनाने वालों।
अंतस का तम मिटा के बंधु,
दीप्त ज्योति श्री राम जगा लो।2
राम की भक्ति करने वालों,
निज अंतस का राम जगा लो।।
काले धंधे,भ्रष्टाचारी,
निज देश से ही गद्दारी।
भरकर रक्खे गोदामों में,
जो दीन की हिस्सेदारी।
सब धंधों को छोड़के बंधु,
पृथ्वी पर कुछ पुण्य कमा लो।3
राम की भक्ति करने वालों,
निज अंतस का राम जगा लो।।
मौर्यवंशी मनीष ‘मन’