निगाहें के खेल में
बहुत कुछ लुटा है निगाहों के खेल में।
दीदार ही दवा है निगाहों के खेल में।
इक झलक से ही दीवाना बना देती हैं
अलग एक अदा है, निगाहों के खेल में।
बिन बोले बुलाती है झुकी झुकी नजरें
अजब इनकी सदा है, निगाहों के खेल में।
निकल न पाये जो फंसे इनके जाल में
नज़र मिलना ख़ता है , निगाहों के खेल में।
रहो आजाद न बनो कैदी,इन निगाहों के
इश्क एक सज़ा है, निगाहों के खेल में।
सुरिंदर कौर