ना तो आया गया ना बुलाया गया
इश्क़ भी इस कदर कुछ निभाया गया
हर कदम पर हमें आजमाया गया
ख्वाहिशें थी मिलन की मगर देखिए
ना तो आया गया ना बुलाया गया
जब सितम की कड़ी धूप सिर पर पड़ी
छोड़कर जिस्म को मेरा साया गया
आया जब सामने वक्त़ गुजरा हुआ
आइने से नजर न मिलाया गया
यूँ अपाहिज हुए आखिरी वक्त़ में
बोझ खुद का न खुद से उठाया गया
कोशिशें की मगर यादों का वो दिया
तल्ख झोकों से भी न बुझाया गया
जो पराया था ‘संजय’ वो अपना हुआ
वो जो अपना था बनकर पराया गया