नारी, लावणी छंद
कितना सुंदर रूप तुम्हारा, कितनी सुंदर काया है ।
मां ममता का रूप तुम्हारा, कितनी सुंदर माया है ।
नारी बनकर बेटी अपनी ,आस्था का है रूप बना।
बहन बन गई बेटी अपनी, सुंदर स्नेही रूप बना।
नारी तुम कितनी भावुक हो, सदा कल्पना में खोयी।
खेली कूदी भर आंगन में, सहज अल्पना रच सोयी।
सोयी सोयी आंखों से अब, देखोगी क्या ये सपना ।
जीवन भर का सुख मिल जाये, कहते हैं जिसको अपना ।
घर आंगन में खेल रहा हो ,सुंदर सा तेरा ललना।
और भुवन सुख दे जाता हो, प्यारा सा सुंदर सजना।
जीवनसाथी भूल न जाना ,अद्भुत जग की माया है ।
कितना सुंदर रूप तुम्हारा, कितनी सुंदर काया है ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम”
वरिष्ठ परामर्शदाता, प्रभारी ब्लड बैंक, जिला चिकित्सालय ,सीतापुर।