– नारी का सम्मान
नारी हर रूप में जीवन को आलोकित करती है,
बुराई बुहार कर अपनेआंगन को सजाती हैं,
अन्नपूर्णा बन प्यार की खुशबू से रसोई महकाती है,
लक्ष्मी बन कर स्नेहरूपी धन सब पर बरसाती है,
मां होकर बच्चों पर अपार वात्सल्य को लुटाती है,
नारी न जाने कितने ही चमत्कार कर जाती है,
बिन नारी जीवन सूना है,खाली लगता
हर कोना है,
फिर भी नारी सम्मान न पाए इससे गलत
करता होना है,
कहां मिलेगा… ममता, वात्सल्य, विश्वास,
समर्पण,
चाहती है नारी सबसे सम्मान,क्या..इतना
नहीं कर सकते अर्पण ?
प्रेम,त्याग की मूर्ति है स्त्री, ईश्वर की सुन्दर
हो तुम कृति,
सब फर्ज पूरे करके भी,सम्मान से वंचित
हो जाती….
जहां होता नारी का सम्मान, वहां बस्ते
सारे भगवान,
जहां भी स्त्री को भगवान का जैसा दर्जा दिया, लेकिन…
बड़ी खूबसूरती से, कुछ अपने पाने की
चाह से वंचित किया,
भगवान का दर्जा नहीं ,सम्मान चाहिए था
अपने लिए कुछ कर गुजरने का ‘सीमा’ मान चाहिए था।
– सीमा गुप्ता