नाउम्मीदि
क्या पाया कुछ भी तो नही
क्या खोया कुछ भी तो नही,
जिन्दगी गुजर रही है बस यूंही
उम्मीद या मंजिल कुछ भी नही ।
लााखो कोशिशे की जिंदगी संवारने की
मगर नाकामयाब रहा हर बाजी हारी ,
किस तरह बताऊं कहानी जिंदगी की
हमे घेर रखा है दिवारे नाउम्मीदि की ।