नहीं रहे सांस्कृतिक पुनर्जागरण युग के पुरोधा नरेंद्र कोहली
जनवरी, 2017 ई. में पद्मश्री से सम्मानित होने वाले सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार डॉ॰ नरेन्द्र कोहली अब हमारे बीच में शारीरक रूप से भले ही नहीं हैं मगर साहित्यिक रूप से सदैव ही रहेंगे। नरेन्द्र जी का जन्म 6 जनवरी 1940 ई. को हुआ और शनिवार 17 अप्रैल 2021 ई. को शाम 6:40 बजे उनका निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। कुछ दिनों पहले उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहाँ उनका देहान्त हुआ।
दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट पूरा करने के बाद डॉ. कोहली ने कुछ दिन अध्यापन कार्य किया। ततपश्चात लेखन से साहित्य में नया मुकाम हासिल किया। आदरणीय नरेन्द्र जी को शलाका सम्मान, साहित्य भूषण, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, व पद्मश्री सहित दर्जनों पुरस्कार मिले।
महाभारत और रामायण की उपन्यास शृंखला से चर्चित हुए डॉ. नरेंद्र कोहली जी ने साहित्य के लगभग समस्त विधाओं जैसे—उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी, संस्मरण, निबंध, पत्र और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी जादुई लेखनी चलाई है व खूब वाहवाही लूटी है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए कोहली जी ने उनके माध्यम से वर्तमान सामाज में उपस्थित समस्याओं, जटिलताओं और उनके यथोचित समाधान को समाज के समक्ष रखा। यही कोहली जी द्वारा रचित साहित्य की प्रमुख विशेषता है। निःसंदेह कोहली जी विशुद्ध सांस्कृतिक, राष्ट्रवादी साहित्यकार व चिन्तक हैं। जिनकी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली व दर्शन का सम्यक् परिचय पाठकों को होता है।
साहित्यकार के रूप में डॉ. नरेंद्र कोहली के उपन्यास “दीक्षा” के साथ ही हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग आरम्भ हुआ कह सकते हैं। जिसकी आलोचना यह कहकर हुई कि प्रगतिशील युग में वे पुरातन परम्पराओं को ढो रहे हैं। इसके बावजूद भी हिंदी साहित्य में वर्तमान युग को “नरेंद्र कोहली युग” का नाम देने की चर्चा जोर पकड़ रही है। यदि ऐसा हुआ तो ये उनके प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि होगी।
डॉ. नरेंद्र कोहली ने सौ से अधिक पुस्तकों का सृजन किया है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि हिन्दी साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ (रामायण व महाभारत) की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय भी आदरणीय नरेंद्र कोहली को ही प्राप्त है। उन्होंने संपूर्ण रामकथा को चार खंडों के 1800 पन्नों के वृहद उपन्यास में प्रस्तुत किया, तो महासमर के आठ खंडों में महाभारत की सम्पूर्ण कथा को रोचकता के साथ समाहित किया। रामकथा पर रचे गए उपन्यासों के कारण कोहली जी आधुनिक पीढ़ी के अपने समर्थकों के बीच ‘आधुनिक तुलसीदास’ के रूप में भी लोकप्रिय थे। उनके निधन पर सभी साहित्यकारों और राजनेताओं ने दुःख व्यक्त किया और और सोशल साइट्स पर अपनी संवेदनाएँ व्यक्त की हैं।
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