*** ” नसीहत – ऐ – पाक…….! ” ***
ऐ मेरे प्यारे वतन ,
ऐ मेरे प्यारे सजन।
कर ले तू अपनी जतन ,
सजा ले अपनी धरती – चमन।
सदा ही पैग़ाम रहा है, और सदा ही रहेगा ;
तुझे करने ही सृजन।
छोड़ दे तू अब , आतंक फैलाना ;
बंद कर दे अब , नव-अंकुर ( युवक) को बहकाना।
नेक नहीं है, तेरे इरादे ;
करते हैं कितने झुठे वादे।
त्याग ले तू अपने मन की घृणा ,
कर अपनी वतन की परवाह।
जला दीप अमर प्रेम की ,
और अपना ले तू सद्भावना की राह।
अन्यथा विश्व-मानचित्र से मिट जायेगा तेरा नाम ,
और न मिलेगें तुझे “अब्दुल-रहीम”
और न ही मिलेगा कश्मीर ;
न तू बोल पायेगा ” अल्लाह-हू-अक़बर ” ,
और न ही ले पायेगा ” अल्लाह ” का नाम।
** कूच कर गये हम ,उन राहों को ;
जिधर से रोड़े आयें हैं।
मुकरने ही पड़े हैं उनको ,
जो जब भी , हमसे टकरायें हैं।
श़बक नहीं सीखा है, क्या तुमने….? ,
उन शहिद वीरों से ;
जो शूली पर भी हँस रहे थे।
कर गये न्यौछावर , जो अपनों के ;
अग्र निकल पड़े , अपनी मंजिल की राहों पर ;
जिन्हें रक्त-रंजित लासें ,
केवल पथ ही पथ नजर आ रहे थे।
*** ये जन्मभूमि है , उन सपूत वीरों की ;
जो स्वरक्त रंगों से खेले हैं होली।
ये ज़मीं नहीं है उनकी ,
जो खींचे हैं अपनों के, दामन-चोली।
ये पावन धरा है उनके,
जो कहलाते थे , ” काले-मतवाले “।
लोहा लिये थे उनसे ,
जो तन से थे गोरे , पर मन से थे काले।
” अनेकता में एकता ” की खूशबू लिये ,
शाँति की वादियों में बसा है,अपना ये वतन।
” प्रेम-अगन ” की रंग फैलाती है ,
यहाँ की हर कली और चमन।
दिलवर हैं , दिलदार हैं और मस्ताने हम सफ़र हैं ;
इस वतन के हर एक सजन।
स्नेह-प्यार की खूशबू भरी है , इस वतन की मिट्टी में ;
ज़रा सुगंध लेकर तो देख।
एक बार फैला तू झोली , यारी-दोस्ती के ;
ये वक्त है अनमोल , तू न कर अब अनदेख।
*** ऐ मलयगिर , ओ पवन चला ,
उस धरती पर ;
जहाँ से आती है बूँ ,
आंधी-तूफां , बे-इमानी और दुश्मनी की।
कह जा संदेशा उनको, शरम आती है हमको ;
उनकी हरकत और हर एक नादानी की।
न कर ख़्वाब , पावन-उर्वर , इस ज़मीं की ;
जहाँ सदा चमन खिली है, शाँति और अमन की।
न लाँघ उस, अमिट शरहद-लकीर को ,
जहाँ कोटि-कोटि अर्जुन खड़े हैं।
न भौंक उस ज़मीं से , इस ज़मीं पर ;
जहाँ असंख्य एकलव्य धनुर्धर अड़े हैं।
और परिणाम यही मिलेंगे ;
” सदा तुझे हारने ही पड़ेंगे । ”
‘ सदा तुझे हारने ही पड़ेंगे । ”
—————— * जय हिन्द जय भारत * ——————
* बी पी पटेल *
बिलासपुर (( छ. ग . )