नशा तेरे प्यार का है छाया अब तक
नशा तेरे प्यार का है छाया अब तक
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नशा तेरे प्यार का है छाया अब तक,
वही नगमा गीत ही है गाया अब तक।
लगे है हम ढूंढनें ना मिल पाये हो तुम,
पता तेरे गांव का ना पाया अब तक।
अभी तक मन मिल न सका यूँ ही है,
हमें मौसम वहाँ का न् भाया अब तक।
मिली कोई मोहलत ना मौका हम को,
गली मेरी में बुला ना लाया अब तक।
चला मैं राहों में अकेला ही मनसीरत,
बना खुद का ही यहाँ साया अब तक।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)