नवदुर्गा
*नवरात्रि **
माता के नवरात्रे आये ।
पूजन भजन जगत मन भाये।।
दो ऋतुओं की संधी बेला ।
नो दिवसी व्रत दूर झमेला।।
दुर्गा देव शक्ति अवतारा ।
शक्ति अधीन सभी संसारा ।।
दुर्गम राक्षस था वरदानी ।
देव लोक जीता अभिमानी ।।
भागे सभी त्रिदेव समेता।
धरा छिपे कर गुफा निकेता।।
सब मिल अपनी शक्ती सुमरी।
दुर्गा रूप अंश माँ उभरी।।
विविध रूप धर असुर सँघारे।
देव लोक गूँजे जयकारे।।
करहि आरती विविध प्रकारा।
विजय पर्व नो दिन त्योहारा।।
शैलपुत्री
प्रथम दिवस में शैल कुमारी।
शिवा नाम शिव को अति प्यारी ।।
वृषवाहन तन तेज बिराजे।
कर त्रिशूल सिर मुकुटहि साजे।।
प्रथम दक्ष घर तव अवतारा ।
दूसर हिमगिर जन्म तुम्हारा।।
पतिव्रता का धर्म निभाया ।
जग हित नारी धर्म बताया ।।
आदि शक्ति का चरित्र सुहावन ।
भक्ति भाव करता मन पावन।।
जग हितार्थ माँ लीला कीन्हीं ।
तप बल की शिक्षा माँ दीन्हीं।।
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी नाम तुम्हारो।
शिव पाने कठिनहि व्रत धारो।।
छोड़ दिया सब घर परिवारा।
शिव भक्ती अरु जाप सहारा ।।
किया आप जंगल में वासा।
भूख प्यास सह मन उपवासा।।
भक्ति देख सहमत सब देवा।
ध्यान भंग करने शिव सेवा ।।
सब मिल शंकर को समझाया ।
उमा संग शिव ब्याह रचाया।।
रूप ब्रह्मचारिणि जग माहीं ।
शिवा रूप उपमा जग नाहीं।।
चंद्रघंटा देवी
जयति जय देवी चंद्रघंटा ।
चन्द्र भाल कर शोभित घंटा।।
महिषासुर राक्षस इक बारा।
जीता स्वर्ग इन्द्रपुर सारा।।
देव भाग धरती पर आये ।
कीन्हीं विनय त्रिदेव मनाये।।
क्रोधवंत सुन दुष्ट कहानी ।
प्रकटी देवी रूप भवानी ।।
अस्त्र शस्त्र सब देवन दीन्हे ।
दसभुज देवी धारण कीन्हे।।
घंटा नाद हुआ भयकारी।
डरे दैत्य सब देव सुखारी।।
महिषासुर का मर्दन कीन्हा ।
स्वर्ग लोक देवन फिर दीन्हा।।
सुखी हुए मानव अरु देवा।
नित करहि चंद्रघंटा सेवा।।
कूष्मांडा देवी
सूर्य लोक में करहि निवासा।
तेज रूप ज्यों सूर्य प्रकाशा।।
माता रचा ब्रह्मांड निकाया।
जगत नाम कुष्मांडा पाया।।
अष्टभुजी माँ सिंह सवारी।
शक्ति भक्ति माता की न्यारी ।।
सकल सृष्टि में आप समाहीं।
प्राण रूप ऊर्जा जग माहीं ।।
नवरात्री का पर्व चतुर्थी ।
पूर्ण करें माँ मन जन अर्थी।।
शरण तुम्हारी जो जन आता।
मन वांछित जीवन फल पाता।।
स्कंदमाता
पावन नवरात्री की बेला।
माँ दरवार भक्त जन मेला।।
अलग वेश में माॅ की पूजा।
निश दिन रूप धरे माँ दूजा ।।
पंचम दिवस स्कंद की माता।
कार्तिकेय माँ गोदी आता ।।
मन भावन माता की मूरत ।
ममतामय वात्सल्यी सूरत।।
संतति सुख को देने वाली ।
आशीर्वाद जाय नहि खाली ।।
माँ करती हैं सिंह सवारी ।
दुष्ट आपदा से रखवारी।।
कात्यायनीदेवी
ऋषि कात्यायन देवी भक्ता।
किया कठिन तप को कह सक्ता।।
अति प्रसन्न हो उमा भवानी ।
प्रकट रूप बोली मृदुवानी।।
जो चाहो माँगो वरदाना ।
पुत्री हो माँ तुम्ही समाना।।
एवमस्तु कह मातु भवानी ।
जन्मी ऋषि घर कात्यायानी।।
महिषासुर का मर्दन कीन्हा ।
नाम प्रसिद्ध सुयश माँ लीन्हा।।
षष्टी तिथि पर पूजन करते ।
भक्ति भाव से माँ को भजते ।।
चतुर्भुजी देवी का रूपा।
स्वर्णिम आभा मातु स्वरूपा।।
चारों फल को देने वाली ।
माँ की महिमा अजब निराली।।
कालरात्रि
रक्तबीज राक्षस वरदानी ।
नाश किया दुर्गा महरानी।।
किया प्रहार खड्ग जब मारे।
रक्त बूँद उपजे बहु सारे।।
क्रोधित होकर दुर्गा माता ।
प्रकटीं कालरात्रि विख्याता ।।
रक्त बूँद कालरात्रि झेला।
मिटा दैत्य का सारा खेला ।।
माँ चतुर्भुज गदर्भ सवारी ।
अति विकराल रूप भयकारी।।
भूत प्रेत सब दैत्य डराते।
नाम सुनहि भय से भग जाते ।।
सप्तम तिथि पर माँ की पूजा ।
कालरात्रि प्रकाश फल दूजा ।।
भयंकरी चंडी चामुण्ड़ा।
नाम जपें देवी के पण्ड़ा।।
महागौरी देवी
एक बार तप किया भवानी ।
श्याम शरीर हुआ शिव जानी।।
शंकर आज्ञा गंग नहाई।
जल प्रभाव देख हर्षाई ।।
गौर वर्ण तन तेज बिराजा।
श्वेत वदन उपमा कवि लाजा।।
महागौरि तबहीं उपनामा।
ड़मरू गूँज रहा शिव धामा।।
कर त्रिशूल ड़मरू की शोभा ।
सुंदर रूप जगत मन लोभा।।
दर्शन लाभ करें सब पूजा ।
वरदायक देवी नहि दूजा ।।
सिद्धीदात्री गौरी माता ।
महागौरी नाम विख्याता।।
सकल मनोरथ पूरा करतीं ।
भक्तों की सब पीड़ा हरतीं।
सिद्धिदात्री
सिद्धिदात्री ही आदि माता ।
उपजाए शिव विष्णु विधाता ।।
जिनकी कृपा सिद्धि सब पाते ।
अष्ट सिद्धि की महिमा गाते ।।
शिव जी कीन्हीं कठिन तपस्या।
सिद्धि प्राप्त तब आठों संख्या ।।
बना अर्धनारीश्वर रूपा ।
आदि देव शंभू जग भूपा।।
नवमी तिथि पर पूजा होती ।
धूप दीप जलती घी ज्योती।।
कमलासिनी माँ सिंह सवारी ।
चतुर्भुजी शोभा अति न्यारी ।।
भक्ति शक्ति अरु सुख की दाता।
विश्व विजय की मातु प्रतादा।।
सकल कामना पूरन करतीं ।
काल करम से माँ नहि डरती।।
राजेश कौरव सुमित्र