नर से नर पिशाच की यात्रा
प्यास ने प्रेरित किया तो, कूप लेकर आए हम।
चुनने हमें जब सार थे, तो सूप लेकर आए हम।।
युद्ध जब बढ़ने लगे, तब बुद्ध लेकर आए हम।
बौद्ध दूषित जब हुए शिवसिद्ध लेकर आए हम।।
जब पड़ी जिसकी जरूरत, कर दिया निर्माण उसका।
मूर्तियां हमने गढ़ी हैं और की प्रतिष्ठित प्राण उसका।।
हमने कर रखा सुरक्षित, वेदों पुराणों को स्मरण से।
हो नही सकती सिया दूषित, रावणों के अपहरण से।।
चाहता तो हूं मगर, अच्छा नहीं,कैसे कहूं भगवान खुद को।
कर दिया निर्माण फिर, घोषित किया प्रभुपाद खुद को।।
हो रहे प्रभु पाद पूजित, सब जगह पूजा घरों में।
केंद्र में प्रभुपाद “संजय”, गिरिजाघरों या मंदिरों में।।
जय सियाराम