नया साल
लो!
आ गया नया साल!
कर लो इस्तकबाल नूतनता का!
रुको तनिक!
सोचो!
क्या खो दिया!
क्या पाया है!
किस हेतु,
नया साल आया है!
छोड़ कर ज़िद,
करना है मेलजोल,
मानवता से!
प्रण लेना है,
मिटाने का;
नकारात्मकता को!
सामाजिक विद्वेष को!
जाति-धर्म के भेद को!
”मैं” को, ”अहम” को!
अज्ञानता के अंधकार को!
स्वार्थ और लिप्सा को!
हर असमानता और अन्याय को!
भोगवादी मानसिकता को! कुरीतियों-कुसंस्कारों को !
कुंठाओं और अंधविश्वास को!
नफरत और नाराजगी को!
भागम-भाग से उपजे अवसाद को!
वादा करना है खुद से……..
खुद के विकास का!
प्रेम के उजास का!
समाज के उत्थान का!
जड़ता के पतन का!
जागृति के आह्वान का!
नारी के सम्मान का!
कर्म से किस्मत का!
सरलता- सादगी का!
भावों में सरसता का!
संसार में समरसता का!
देश के गौरव संधान का! मर्यादा-ममता-मान का!
प्रकृति-पर्यावरण बचाव का!
सामाजिक सद्भाव-बदलाव का!
तो सुनो!
सार्थक होगा अपना,
देखा हुआ हर सपना!
किया गया हर काम!
होंगे सुखद,
शहर-गांव!
उन्नति के उठते पांव!
सुधरेंगे.……….
सबके हाल!
सब होंगे, खुशहाल!
फिर मनाईए “मौज”
सुखमय नया साल!!
विमला महरिया “मौज”