नयनों मे प्रेम
नयनों में यूँ प्रेम सजा के
मैं द्वार तुम्हारे आई थी
सपने नये बनने लगे थे
नभ में तारे दिखने लगे थे
हर लिप्सा को मानने लगी थी
हमसफ़र जानने लगी थी
चल पड़ी थी तब संग तुम्हारे
छोड़ के अपने घर द्वारे
नाता तुमसे यूँ जोड़ लिया
साथ अपनो का छोड़ दिया
संबंध सारे मैं तोड़ आई
मेरे अपने पीछे छोड़ आई
धर्म,जात, की सारी कहानी
सहसा ही तुमने सुनाई
मेरा न मेरे भीतर रहा
अस्तित्व ही तुमने बदल डाला
खोकर भी सबकुछ मेरा अपना
साथ तुम्हारे चलते रहना
समय अब कदाचित बदल गया
जीवन तो केवल ठहर गया
वापस तो न लौट पाऊँगी
संग तुम्हारे रम जाऊँगी
पथ सारे भूल आई थी
हाय कैसी प्रीत लगाई थी
भावनाओं का मोल न था
स्नेह का कोई तोल न था
कैसा अजब ये मेल हुआ
प्रेम का वीभत्स खेल हुआ
इक क्षण भी मेरे न हो सके
कभी हॄदय को न छू सके
मानव तो कभी न माना
हाड़ माँस का पुतला जाना
प्रेमसंसार तुमने दिखलाया
नयनों में विश्वास जगाया
हाथों में हाथ थाम लिया
जीवन तुम्हारे नाम किया
जगमग साँसों की लौ बुझा दी
डोर प्रेम की बरबस तोड़ दी
विश्वास,प्रेम का सिला दिया
यूँ गहन नींद में सुला दिया।।
बात बस इक तुम बतलाना
वादे से कहीं मुकर न जाना
पहचान मेरी यूँ मिटा दी
विश्वास,प्रेम की मुझे सजा दी
✍”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक