*नदी नहीं है केवल गंगा, देवलोक का गान है (गीत)*
नदी नहीं है केवल गंगा, देवलोक का गान है (गीत)
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नदी नहीं है केवल गंगा, देवलोक का गान है
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किया भगीरथ ने तप भारी, तब गंगा को लाए
किंतु प्रश्न था वेग स्वर्ग से, भला कौन सह पाए
बॉंधा शिवजी ने गंगा को, यह मोहक आख्यान है
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चली स्वर्ग से गंगा उजली, लिए दूध-सी काया
मृत्यु-लोक की कब यह रचना, एक अलौकिक माया
जल से बढ़कर गंगाजल, यह अमृतमय वरदान है
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वर्षों घर में रखा हुआ, किंचित विकृति कब पाता
यह अद्भुत गुण सिर्फ एक, गंगा में पाया जाता
इसीलिए शुचिता का मतलब, गंगाजल का पान है
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गंगा के तट पर मेले हैं, यहॉं मस्तियॉं पलतीं
खिली धूप-कोहरे की चादर, ऋतुऍं रोज बदलतीं
यह गंगा का ही प्रवाह है, भारत बना महान है
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पूजन करें नित्य गंगा का, उसको मानें माता
यह भारत की सॉंसों में, सच्ची आह्लाद प्रदाता
छुपा हुआ गंगा-शुचिता में, भारत का सम्मान है
नदी नहीं है केवल गंगा, देवलोक का गान है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 1545 1