नदी कौशिकी
कौशिकी या कोसी या कोशी बिहार की शोक नदी है, यह सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, कटिहार, पूर्णिया, अररिया में प्रवाहित है, किन्तु किशनगंज और खगड़िया क्षेत्र “कोशी” प्रवाहित क्षेत्र नहीं है, अपितु छाड़ित क्षेत्र है, जो बाढ़ से आप्लावित ‘जल’ विसरण लिए है। एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए प्रस्थानित रास्ते में कोसी की चार सहायक नदियाँ मिलती हैं।
तिब्बत की सीमा से लगे नामचे बाज़ार कोसी के पहाड़ी रास्ते का पर्यटन के हिसाब से सबसे आकर्षक स्थान है। अरुण, तमोर, लिखु, दूधकोशी, तामाकोशी, सुनकोशी, इन्द्रावती इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। नेपाल में यह कंचनजंघा के पश्चिम में पड़ती है। नेपाल के हरकपुर में कोसी की दो सहायक नदियाँ दूधकोसी तथा सनकोसी मिलती हैं। सनकोसी, अरुण, प्रज्ज्वल उपनदी “तमर” नदियों के साथ मिलकर त्रिवेणी नहीं, अपितु चौवेणी कहलाती है। इसके बाद नदी को सप्तकोशी कहा जाता है। वराहक्षेत्र में यह तराई क्षेत्र में प्रवेश करती है और इसके बाद से इसे कोशी या कोसी कहा जाता है। इसकी सहायक नदियाँ एवरेस्ट के चारों ओर से आकर मिलती हैं और यह विश्व के ऊँचाई पर स्थित ग्लेशियरों या हिमनदों के जल लेती हैं।
त्रिवेणी के पास नदी के वेग से एक खड्ड बनाती है, जो कोई 10 किलोमीटर लम्बी है। भीमनगर के निकट यह भारतीय सीमा में दाख़िल होती है। इसके बाद दक्षिण की ओर 260 किमी चलकर कटिहार जिलान्तर्गत कुरसेला और काढ़ागोला की संयुक्त क्षेत्र गंगा में मिल जाती है, किंतु यह सच नहीं है। सच यह है कि कोसी के प्रवाह का अंत इसी ज़िले के मनिहारी अंचल के बाघमारा में आकर होती है। जो कि बिहार में है।