नज़्म _ तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
एक नज़्म 🌹🥰
🤔 22 22 22 22 22 ,,,
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तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
तन्हा शम्स है, तन्हा ही मुक़द्दर है ।
साथ भी कैसे , हो किसी का अब ,
तन्हा मेरा ये रब , ही मुनव्वर है ।
लाखों कोशिशें भी करो, नहीं कोई ,
आँख ढूंढती है जिसे वो, नहीं कोई ।
क़लम चले ही नहीं ,लिखे क्या कोई ,
तक़दीर लिखे जो वही तो मुसव्विर है ।
जब कोई तारा , दूर टूटता है ,
मानिन्द शरारों के , जो छूटता है ।
गिर कर नज़र से दहर फूटता है ,,,
बस यहीं कहीं देखो मुतकब्बिर है ।
सामने वो है , मेरी जो नहीं सुनता ,
मरहले हजारों हैं , वो नहीं चुनता ।
आवाज़ न दो ,वो ‘नील’, नहीं रुकता ,
है जो समीं , बस वही तो , मुबश्शिर है ।
✍ नील रूहानी,,,, 16/07/2024