नजर तो मुझको यही आ रहा है
अपनी कलम से जिसको कर रहा हूँ बयाँ,
बदलती जिसकी प्रकृति के स्वभाव को,
एक ही वर्ष में बार-बार उसके मौसम को,
इसका कारण जैसा कि मैं मानता हूँ ,
नजर तो मुझको यही आ रहा है।
बहार और बयार जिसकी जमीं पर,
जिनसे रहा है वास्ता मेरा भी कभी,
मैंने जब जोड़ा था उससे रिश्ता,
बहार आने की मैंने की थी उम्मीद,
लेकिन उसने भर दी तड़प मेरे जीवन में,
इसकी वजह जैसा कि मैं समझता हूँ ,
नजर तो मुझको यही आ रही है।
लगाई थी उसने कीमत,
मेरी सादगी-मेरी बन्दगी की,
एक पल में ही बदल गई थी,
उसकी सूरत और प्रकृति,
एक ही क्षण में हो गया था,
तब मौसम निराशाजनक,
हो सकती है इसकी वजह वह भी,
नजर तो मुझको यही आ रही है।
सहनी पड़ती है विदाई भी,
आता है तूफान और पतझड़ भी,
होते हैं कभी गर्दिश में भी सितारें,
होती है अमावस्या भी जीवन में,
और आती है बाढ़ ऑंसुओं की भी,
मगर इसका कारण यही होगा,
नजर तो मुझको यही आ रहा है।
लेकिन समय नहीं रहता कभी एक सा,
मौसम नहीं रहता कभी एक समान,
नसीब कब बदल जाये जीवन में,
कुछ कहा नहीं जा सकता इस बारे में,
होती है कभी ऐसी भी बरसात,
कि लहलहा उठते हैं खेत जमीं पर,
और गुलजार हो जाता है चमन,
सावन भी आयेगा फिर से कभी,
नजर तो मुझको यही आ रहा है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847