नजरअंदाज वर्तमान
नाकुछ करके आज
जब पूछेगा भविष्य तुझसे।
जब धुँआ सुलग रहा था
तू कहाँ सो रहा था।।
अब लग चुकी है आग तो,
सब राख करके जाएगी।
पडौसी का घर तो
तेरा भी बिस्तर खाक करके जाएगी।
क्यूँ हो रहा मदहोश तू,
इन बेबजह की बातों में।
क्या कभी श्मशान की आग,
चूल्हा किसी का जला पाएगी।।
तू हो रहा है बेख़बर,
हर ख़बर को सामने देखकर।
नजरअंदाज ना कर व्यस्त होकर,
यही आग तेरा कल सबकुछ निगल जाएगी
नफ़रत का नही है दायरा,
अंधेरे के जैसा है वजूद इसका।
एकबार इसमें घुसा गया तो,
रोशनी कभी ना नजर आएगी।।
आँसू बहाकर घड़ियाल तुझसे,
कर रहा है सौदा तेरे जिगर का।
बीच मझधार में तुझे ले जाकर,
कल तुझे ही नोंच खाएगा ।।