नए ज़माने की सौतन
नए ज़माने की सौतन (भोजपुरी भाषा में)
मोबाइल
करी-करी अंखियां मिचौली
बतिया-बतियाई री
हे! सखी-पिया भुलाई री
जवने सवतिया के पीछे
मोर पिया धनवा लुटाई री
लेके रतिया-दिनावा
सिनावा से लगाई री
हे! सखी कउनों सुंदरी ना
ऊ ह मोबाइल री
कहीं कईसे बतिया
रे सखी हम तोहसे
ई रोगवा बहुत बुरा भईल री
लागे पियावा अब हमके विसराई री
सोवत के बेरिया देखे अंखियां गड़ाई री
कब कटे रतिया, दिनवा आवे कब नाही बुझाई री
हमरा छोड़ पियावा के घोर प्रेम भईल
हे! सखी कउनों सुंदरी से ना
ऊ ह मोबाइल री
सावने में भईल गठजोड़
देखत में गुजर गईल आषाढ़ री
पियवा भईल कठोर
अब आवत बा जाड़ री
हँस-बोली-मीठी बतिया
पियावा हमसे एको दीनवा ना बतियाईल री
सुने ना हमार काउनो अरजिया
कईसे हम समझाई री
सेजिया पर लेके तकियावा
जीयरा कईसे हम जुड़ाई री
दे! सखी काउनो उपइया
अदतिया हम उनकर छुड़ाई री
आपन गऊवा में सखियन से हँसी-बोली
दिनावा कट जाए री
इंहवा ना देवरा-ननदी
करी केकरा से मजकिया री
लागे पिया मोर भईले जोगी
सटत भीरिया भागि जाए री
हमरो नसिबवा के का भईल
मिलल पति बउराईल री
ओईसे! बहरिया दुअरा पर
बोलस जईसे तोता री
भीतरा-घरवा में ज़ईसे
हमरे से लज़ाई री
सुबहिया उगत सुरज के समईया
उठत कानवा में लेलें लगाई री
हे! सखी कउनो झूमका-कुण्डल ना
ऊ ह मोबाइल री
रहत एके घरवा में
एके संगे खात-पियत री
तबो पिया हमसे ना बोलस-बतियावस री
रहत पासे दूरी भईल री
हे! सखी एकर कारन, केहू अउर ना
ऊ ह मोबाइल री
– अभिषेक पासवान