नई सुबह
भोर हुई लो भोर हुई
रश्मियों ने डाला डेरा
सूर्य देवता का हुआ पग फेरा
चंचल चिड़िया चहक उठीं
पुष्प वाटिका महक उठीं
मन मुग्ध बावरा नाच उठा
पंछियों ने सुर मधुर बिखेरा।
नवदिवस दिखाता नव स्वप्न
उत्साहित तन प्रफुल्लित मन
नवसृजन को उल्लासित उर
उत्प्रेरित हुए सृजित करने नव युग
आ गया एक और नया सवेरा।
?शुभ प्रभात ?
—-रंजना माथुर दिनांक 22/08/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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