धोखे से मारा गद्दारों,
धोखे से मारा गद्दारों,
आते समक्ष दिखला देते।
तुम होते कितने फन्ने खां,
वहीं धरती में दफना देते।
होती गर जंग सामने से,
पुलवामा कथा और होती।
लाशों में लाश गिराते हम,
सालों तक औलादें रोती।
हे! मां के लाल प्रणाम मेरा,
तुमने अपना हक़ अदा किया।
उन वीरों को श्रद्धा अर्पण,
जिसने माटी को लहू दिया।
– सतीश ‘सृजन’