✍️✍️धूल✍️✍️
✍️✍️धूल✍️✍️
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साल बाद लौटा हूँ
गहरी नींद थी
पलकें भारी थी
फिर भी सोचा
आज घर की सफाई
कर ली जाए,
पाँच कमरे की ना सही
कम से कम दो की तो
कर ली जाए,
दीवानखाने से
शुरुवात करते है,
देखो कितनी धूल है,
जगह जगह हर जगह..
कुछ खिड़कियों को सांफ
करते है जो खुली हवाँ
महसूस कराती है…
हाँ तावदानों को भी
पोछते है जहाँ से
सूरज की साफ़ रोशनी
अंदर आती है,
अलमारी में बहोत सा
सामान बिखरा है
कुछ यादे भी बिखरी है,
अलबम की
तस्वीरों में कुछ कैद है,
वो मेज पर रखी किताबें
अमृता की कहानियाँ
साहिर की शायरियां
जरा इनको भी इकठ्ठा कर लूँ,
ये दिल के दर्द पर दवा
का काम करती है…
ये आइना भी अच्छी
तरह साफ़ करना पड़ेगा
वरना अपना ही चेहरा
साफ़ नज़र नहीं आयेगा,
आरामकक्ष को भी बहोत
सफाई के साथ साफ़ करना होगा,
कोशिश करने पे कभी
यहाँ भी नींद आ सकती है,
हर कोने कोने की धूल,
हर छत को लगी धूल,
दरवाजे पे जमी धूल,
खिड़कियों पे बसी धूल,
उसके बाहर की धूल साफ़ करना
इंसान के लिये बहोत जरुरी है,
ये खुली हवाँ,ये ज्यादा रोशनी
इंसान का स्वास्थ्य अच्छा रखती है,
इसीलिए बार बार धूल
साफ़ करनी चाहिए,
मैंने झटक झटक कर अपने
इर्दगिर्द और बाहर की
धूल साफ़ कर ली है।
सिर्फ..अपने अंदर झांककर
अंतरात्मा में जमी बरसो कि
धूल झटक न पाया,
अपनी दृष्टि साफ़ न कर पाया,
मैं यही एक जीवन में बड़ी भूल कर गया…!
साल बाद लौटा हूँ
गहरी नींद थी…!
पलके भारी थी…!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
03/06/2022