धूल जिसकी चंदन है भाल पर सजाते हैं।
गज़ल
212…….1222…….212…….1222
धूल जिसकी चंदन है भाल पर सजाते हैं।
देश अपना जन्नत है शीश हम झुकाते हैं।
जिसमें खाये खेले हैं और नाम पाया है,
मातृभूमि से हम सब मां का प्यार पाते हैं।
जिंदगी हमारी ये आपकी मुहब्बत है,
हम इसी मुहब्बत पर दिल ओ जां लुटाते हैं।
गम ही गम समाए हैं मुफलिसों की दुनियां में,
अपनी बाजुओं से ही सारे ग़म उठाते हैं।
वोट ले के जनता से फिर कभी नहीं आए,
देश भाड़ में जाए गिद्ध बन के खाते हैं।
प्यार से जो निभ जाए जिंदगी वही प्रेमी,
रंजिशो की दुनियां में रिश्ते डूब जाते हैं।
………✍️ प्रेमी