धूल का फूल
धूल का जो फूल है
सुख उसे प्रतिकूल है
प्रेम की परवाह नहीं
सुखों की भी चाह नहीं
नाता है संघर्ष से
स्वयं के उत्कर्ष से
बाजुओं पर है भरोसा
किस्मतों को नहीं कोसा
डर किसी का है नहीं
सामने सब कुछ यहीं
चिर सरल व्यवहार है
पुरुषार्थ से ही प्यार है
विपत्तियां आती रहीं हैं
सीने पर डटकर सहीं हैं
इनको जिनने जब सताया
हुआ उनका तब सफाया
इनको जो दोगे हौसला
तुम्हारा भी होगा भला
मनुज की यह परीक्षा है
धर्म की यही दीक्षा है