धुंध अंधाधुंध….
पर्यावरण की दुर्दशा पर कुछ विचार…
क्या दिल्ली लखनऊ क्या, सबका है यह हाल।
खुद ही गलती वह करे, खुद ही है बेहाल।1
गैस चैंबर में बदल गया, पूरा एन सी आर।
धुआं धुंआ सा हो गया, मानव का व्यवहार।2
इस पैसे की दौड़ में, अंधा है इंसान।
चाहे मानुष शहर का, या गांव का किसान।3
सभी नतीजा भुगत रहे, अंधी दौड़ का आज।
दोषारोपण करते सभी, आये न किसी को लाज।4
नेता शासन वर्ग सब, करें खोखली बात।
झूठे वादों की सभी, देतें हैं सौगात।5
जागृति लाने की अभी, ज्यादा है दरकार।
जुड़ जायें अब आम जन, और जुड़े सरकार।6
करने होंगे इस समय, युद्ध स्तर पर प्रबंध।
शासन जनता जब जुड़ें, तभी मिटेगी धुंध।7
प्रवीण त्रिपाठी
07 नवम्बर 2016